सोराइसिस, त्वचा की खूबसूरती को कैसे पाएं वापस
सोराइसिस त्वचा का ऐसा गंभीर रोग है, जिसमें त्वचा की पर्त बदसूरत व बदरंग होने लगती है। दवाओं से इस रोग के ठीक न होने का कारण यह है कि दवाएं या तो सोराइसिस के लक्षणों का मात्र इलाज करने का प्रयास करती है या शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को दबाने का। बहरहाल होलिस्टिक से इस रोग का उपचार कर त्वचा की बदसूरती को खूबसूरती में बदला जा सकता है। कारण सोराइसिस होने का एक मुख्य कारण शरीर में अम्ल व क्षार का असंतुलन होना है। अपवाद स्वरूप ऐसे रोगी भी हैं, जिनमें यह मर्ज आनुवांशिक कारणों से होता है। अम्ल और क्षार के असंतुलन के पीछे जो कारण उत्तरदायी हैं, उनमें हमारा गलत और अनियमित खानपान, रहन-सहन, अत्यधिक तनाव और प्रदूषित माहौल को शुमार किया जाता है।
उपचार
भोजन में सुधार
जैसे ही हम उच्च क्षारीय भोजन, अधिक मात्रा में अलग-अलग प्रकार के ताजे फल व सब्जियां लेना शुरू करते हैं। शरीर में क्षार व अम्ल के असंतुलन में सुधार होने लगता है। यह स्थिति रोग को ठीक करने की दिशा में पहला कदम है।
क्लीजिंग
इसके तहत लिवर का शोधन सबसे महत्वपूर्ण है। यह शोधन आसानी से एपसम साल्ट, जैतून का तेल या अरंडी तेल व नींबू से किया जा सकता है। साथ में क्षारीय भोजन व पानी की सही मात्रा के प्रयोग से शरीर का भी शोधन होने लगता है। इस कारण बीमारी के तेजी से ठीक होने में मदद मिलती है।
न्यूट्रास्यूटिकल्स
आजकल सूक्ष्म पोषक तत्व बाजार में उपलब्ध हैं, जिनका सेवन कंसल्टेंट के परामर्श से करें। न्यूट्रास्यूटिकल्स के प्रयोग से शरीर में विटामिन, खनिज लवण व फैटी एसिड्स आदि की कमी को पूरा किया जा सकता है।
हर्ब्स का प्रयोग
वनस्पतियों के एक्सट्रैक्ट के इस्तेमाल से रोग का नाश करने में काफी मदद मिलती है। मुख्य औषधियों में एम्बलाइका, ऑफीसिनेलिस, टर्मिनेलिया बेलेरिका, टर्मिनेलिया चेबुला, बिथानिया सोमनीफेरा, सोलेनम नाइग्रम, कैटेरिया लैक्का, एक्लिप्टा एल्बा, पिकरोराइजा कुरोआ आदि की मुख्य हैं। इन सभी औषधियों का प्रयोग चिकित्सक के परामर्श के बगैर कदापि न करें। ये औषधियां मानसिक तनाव को दूर कर शरीर के रोग-प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत करती हैं।
उपचार की अवधि
सोराइसिस के मरीजों को पूरी तरह ठीक होने में लगभग चार महीने का समय लग सकता है। हालांकि मरीज को राहत पहले पहीने से ही मिलनी शुरू हो जाती है।
कठिन त्वचा, रोगों का निश्चित समाधान है
पुराने समय से जहां भी गरम पानी के प्राकृतिक स्रोत होते थे, वे तीर्थस्थान बन जाते थे और लाखों लोग अभी भी उन स्थानों पर अपने कठिन त्वचा एवं अन्य रोगों से मुक्त होने जाते हैं। यह वास्तव में जल चिकित्सा का भाग है। लवणयुक्त पुल बॉथ को 'बैलियोथैरेपी' भी कहते हैं।
गरम स्नान कैसे प्रभाव दिखाता है?
गरम पानी के प्रभाव से शरीर का तापमान बढ़ता है जिससे हानिकारक जीवाणु एवं विषाणु मर जाते हैं।
गरम स्नान से रक्त का प्रवाह बढ़ता है और कोशिकाओं को अधिक ऑक्सीजन मिलती है। बढे हुए रक्त प्रवाह से विजातीय तत्व घुलकर शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
लवण युक्त गरम-जल के स्नान से सभी कोशिकाओं एवं उत्तकों को पोषण मिलता है।
लगातार ऐसे स्नान से शरीर का प्रतिरक्षातंत्र एवं अंत:स्रावी तंत्र ठीक से कार्य करने लगता है।
अल्पमात्रा में उपस्थित रसायन जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर, कैल्शियम, मैग्ीशियम, लिथियम आदि शरीरी से अवशोषित कर लिए जाते हैं जो प्रतिरक्षा तंत्र पर विशेष प्रभाव दिखाते हैं जिससे 'आटोइम्यून' श्रेणी की बीमारियां ठीक होती हैं।
पानी कितना गरम हो
मरीज के रोग के अनुसार 98 फारेनहाइट से 115 फारेनहाइट के तापमान के पानी का प्रयोग किया जाता है जिसका समय 1 से 20 मिनट तक हो सकता है।
स्नान कैसे?
ह्वडेड सी साल्ट बाथ: आवश्यकता के अनुसार 50 ग्राम से 200 ग्राम तक डेड सी साल्ट प्रयोग में लाते हैं। यह स्नान 'सोराइसिस' एवं रयूमेटाइड आर्थराइटिस को जड़ से मिटाता है।
ब्राइन साल्ट बाथ: एक बार में 2.5 से 3 किलो तक सामान्य नमक का प्रयोग करते हैं। यह एक्जिमा को समूल नष्ट करता है।
सल्फर बाथ: यह 200 ग्राम पोटाश में सल्फर मिलाकर तैयार करते हैं। त्वचा की संक्रामक बीमारियों में उपयोगी है।
वैज्ञानिक शोध: सोराइसिस, एक्जिमा, ल्यूकोडर्मा, मुंहासे, झाइयां एवं शरीर काला पड़ना आदि बीमारियों में साल्ट स्नान के साथ शरीर को विजातीय द्रव्यों से मुक्त कर, छोटे-छोटे वैज्ञानिक उपवासों के साथ उच्च क्षारीय भोजन के समावेश से लगभग शत-प्रतिशत मरीजों को ठीक करने में सफलता प्राप्त हुई है। विश्व भर में इस विषय पर अनेकों शोधपत्र प्रस्तुत किए जा चुके हैं।
सावधानियां: प्रशिक्षित एवं योग्य चिकित्सक से ही चिकित्सा करानी चाहिए, प्राकृतिक चिकित्सा एक सम्पूर्ण चिकित्सालय है। अत: साथ में अन्य दवाओं का प्रयोग वर्जित हैं।
सोराइसिस त्वचा का ऐसा गंभीर रोग है, जिसमें त्वचा की पर्त बदसूरत व बदरंग होने लगती है। दवाओं से इस रोग के ठीक न होने का कारण यह है कि दवाएं या तो सोराइसिस के लक्षणों का मात्र इलाज करने का प्रयास करती है या शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र को दबाने का। बहरहाल होलिस्टिक से इस रोग का उपचार कर त्वचा की बदसूरती को खूबसूरती में बदला जा सकता है। कारण सोराइसिस होने का एक मुख्य कारण शरीर में अम्ल व क्षार का असंतुलन होना है। अपवाद स्वरूप ऐसे रोगी भी हैं, जिनमें यह मर्ज आनुवांशिक कारणों से होता है। अम्ल और क्षार के असंतुलन के पीछे जो कारण उत्तरदायी हैं, उनमें हमारा गलत और अनियमित खानपान, रहन-सहन, अत्यधिक तनाव और प्रदूषित माहौल को शुमार किया जाता है।
उपचार
भोजन में सुधार
जैसे ही हम उच्च क्षारीय भोजन, अधिक मात्रा में अलग-अलग प्रकार के ताजे फल व सब्जियां लेना शुरू करते हैं। शरीर में क्षार व अम्ल के असंतुलन में सुधार होने लगता है। यह स्थिति रोग को ठीक करने की दिशा में पहला कदम है।
क्लीजिंग
इसके तहत लिवर का शोधन सबसे महत्वपूर्ण है। यह शोधन आसानी से एपसम साल्ट, जैतून का तेल या अरंडी तेल व नींबू से किया जा सकता है। साथ में क्षारीय भोजन व पानी की सही मात्रा के प्रयोग से शरीर का भी शोधन होने लगता है। इस कारण बीमारी के तेजी से ठीक होने में मदद मिलती है।
न्यूट्रास्यूटिकल्स
आजकल सूक्ष्म पोषक तत्व बाजार में उपलब्ध हैं, जिनका सेवन कंसल्टेंट के परामर्श से करें। न्यूट्रास्यूटिकल्स के प्रयोग से शरीर में विटामिन, खनिज लवण व फैटी एसिड्स आदि की कमी को पूरा किया जा सकता है।
हर्ब्स का प्रयोग
वनस्पतियों के एक्सट्रैक्ट के इस्तेमाल से रोग का नाश करने में काफी मदद मिलती है। मुख्य औषधियों में एम्बलाइका, ऑफीसिनेलिस, टर्मिनेलिया बेलेरिका, टर्मिनेलिया चेबुला, बिथानिया सोमनीफेरा, सोलेनम नाइग्रम, कैटेरिया लैक्का, एक्लिप्टा एल्बा, पिकरोराइजा कुरोआ आदि की मुख्य हैं। इन सभी औषधियों का प्रयोग चिकित्सक के परामर्श के बगैर कदापि न करें। ये औषधियां मानसिक तनाव को दूर कर शरीर के रोग-प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत करती हैं।
उपचार की अवधि
सोराइसिस के मरीजों को पूरी तरह ठीक होने में लगभग चार महीने का समय लग सकता है। हालांकि मरीज को राहत पहले पहीने से ही मिलनी शुरू हो जाती है।
कठिन त्वचा, रोगों का निश्चित समाधान है
पुराने समय से जहां भी गरम पानी के प्राकृतिक स्रोत होते थे, वे तीर्थस्थान बन जाते थे और लाखों लोग अभी भी उन स्थानों पर अपने कठिन त्वचा एवं अन्य रोगों से मुक्त होने जाते हैं। यह वास्तव में जल चिकित्सा का भाग है। लवणयुक्त पुल बॉथ को 'बैलियोथैरेपी' भी कहते हैं।
गरम स्नान कैसे प्रभाव दिखाता है?
गरम पानी के प्रभाव से शरीर का तापमान बढ़ता है जिससे हानिकारक जीवाणु एवं विषाणु मर जाते हैं।
गरम स्नान से रक्त का प्रवाह बढ़ता है और कोशिकाओं को अधिक ऑक्सीजन मिलती है। बढे हुए रक्त प्रवाह से विजातीय तत्व घुलकर शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
लवण युक्त गरम-जल के स्नान से सभी कोशिकाओं एवं उत्तकों को पोषण मिलता है।
लगातार ऐसे स्नान से शरीर का प्रतिरक्षातंत्र एवं अंत:स्रावी तंत्र ठीक से कार्य करने लगता है।
अल्पमात्रा में उपस्थित रसायन जैसे कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर, कैल्शियम, मैग्ीशियम, लिथियम आदि शरीरी से अवशोषित कर लिए जाते हैं जो प्रतिरक्षा तंत्र पर विशेष प्रभाव दिखाते हैं जिससे 'आटोइम्यून' श्रेणी की बीमारियां ठीक होती हैं।
पानी कितना गरम हो
मरीज के रोग के अनुसार 98 फारेनहाइट से 115 फारेनहाइट के तापमान के पानी का प्रयोग किया जाता है जिसका समय 1 से 20 मिनट तक हो सकता है।
स्नान कैसे?
ह्वडेड सी साल्ट बाथ: आवश्यकता के अनुसार 50 ग्राम से 200 ग्राम तक डेड सी साल्ट प्रयोग में लाते हैं। यह स्नान 'सोराइसिस' एवं रयूमेटाइड आर्थराइटिस को जड़ से मिटाता है।
ब्राइन साल्ट बाथ: एक बार में 2.5 से 3 किलो तक सामान्य नमक का प्रयोग करते हैं। यह एक्जिमा को समूल नष्ट करता है।
सल्फर बाथ: यह 200 ग्राम पोटाश में सल्फर मिलाकर तैयार करते हैं। त्वचा की संक्रामक बीमारियों में उपयोगी है।
वैज्ञानिक शोध: सोराइसिस, एक्जिमा, ल्यूकोडर्मा, मुंहासे, झाइयां एवं शरीर काला पड़ना आदि बीमारियों में साल्ट स्नान के साथ शरीर को विजातीय द्रव्यों से मुक्त कर, छोटे-छोटे वैज्ञानिक उपवासों के साथ उच्च क्षारीय भोजन के समावेश से लगभग शत-प्रतिशत मरीजों को ठीक करने में सफलता प्राप्त हुई है। विश्व भर में इस विषय पर अनेकों शोधपत्र प्रस्तुत किए जा चुके हैं।
सावधानियां: प्रशिक्षित एवं योग्य चिकित्सक से ही चिकित्सा करानी चाहिए, प्राकृतिक चिकित्सा एक सम्पूर्ण चिकित्सालय है। अत: साथ में अन्य दवाओं का प्रयोग वर्जित हैं।
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