फोबिया दूर करने के ये हैं कुछ आयुर्वेदिक इलाज
आप और हम अपने जीवन में भविष्य को ध्यान में रखकर काम करते हैं। इसके लिए हमारी एक व्यवस्थित सोच होती है, जैसे मान लीजिए कि हमें कहीं जाना है तो हम पूरी तैयारी के साथ अपना रिजर्वेशन,पैकिंग एवं रहने की अग्रिम बुकिंग आदि पहलुओं को ध्यान में रखकर सकारात्मक कार्यक्रम बनाते हैं। इसके लिए कोई अतिरिक्त तनाव लेने की आवश्यकता नहीं होती। मतलब समझ गए होंगे आप कि यह सामान्य तनाव में ही पूरी होनी वाली प्रक्रिया है।
लेकिन जब इसमें एक तनाव जैसे: घबराहट, यात्रा के दौरान एक्सीडेंट होने का भय या होटल में कुछ अनहोनी होने का भय या ट्रेन में लूटपाट होने का भय आदि सताने लगे तो इसे एंजायटी कहा जाता है। इसे अनावश्यक रूप से क़ी गई भविष्य की नकारात्मक चिंता के रूप में आप समझ सकते हैं। कई बार यह चिंता एक फोबिया या भय का रूप ले सकता है।
अत: सामान्य रूप से एंजायटी से हम सभी थोड़ा बहुत जूझते हैं, लेकिन जब यह अति जैसी स्थिति को उत्पन्न करने लग जाए, जो डर का रूप ले ले और सोशल फोबिया या ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिसआर्डर (जुनूनी बाध्यकारी विकार) जैसे, बार-बार समय देखना,दरवाजे के खुले होने का बार-बार भ्रम जैसे लक्षण उत्पन्न करे तो स्थिति खतरनाक मानी जा सकती है। एंजायटी से जूझ रहा व्यक्ति कहीं न कहीं अवसाद का भी शिकार भी होता है। ऐसी स्थिति में इसे पूरी तरह ठीक करना कठिन होता है। हाँ, रोगी को औषधि उपचार एवं बिहेवियर थेरेपी द्वारा सामान्य स्थिति में बनाए रखा जा सकता है।
आयुर्वेद में मानसिक स्वास्थ्य को पूर्ण स्वास्थ्य का स्तम्भ माना गया है और आत्मा, इन्द्रिय एवं मन की प्रसन्नता को स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक बताया गया है। आयुर्वेद के ग्रंथों में मनोरोगों की विस्तृत विवेचना की गई है। अगर आप में निम्न लक्षण उत्पन्न हो रहे हों जैसे :
-सुबह सुबह अचानक नींद खुल जाना।
-छोटी- छोटी बातों का याद न रहना।
-हाथ पैरों में कम्पन आना।
-हमेशा परेशान (रेस्टलेस) रहना। यदि ऐसा कुछ हो रहा है तो समझ लें आप एंजायटी की अवस्था से गुजर रहे हैं। ऐसी स्थिति में आयुर्वेद में नस्य चिकित्सा, औषधि उपचार एवं आहार-विहार पर विशेष ध्यान देने क़ी आवश्यकता होती है।
-सर्पगंधा, खस,जटामांशी, ब्राह्मी, तगर, आंवला, गुलाब आदि कुछ ऐसे नाम हैं जिनका चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग दुष्प्रभाव रहित लाभ देता है।
-अश्वगंधा एवं बला चूर्ण जैसी औषधियां भी मानसिक दुर्बलता को दूर करने में कारगर होती हैं।
-कुछ बहु औषधि युक्त चूर्ण जैसे: सारस्वतादि चूर्ण, तगरादि चूर्ण एवं अश्वगंधादि चूर्ण आदि का प्रयोग बड़ा ही फायदेमंद होता है।
-औषधिसिद्धित घृत में महापैशाचिक घृत, पंचगव्य घृत, पुराण घृत, ब्राह्मी घृत आदि का सेवन भी लाभ देता है।
-बलारिष्ट, सारस्वतारिष्ट आदि को समभाग जल से भोजन उपरांत लेना भी मनोविकृतियों में लाभ देता है ।
-कृष्णचतुर्मुख रस, उन्मादगजकेसरीरस एवं स्मृतिसागररस जैसी औषधियों का प्रयोग चिकित्सक के निर्देशन में लेना एंजायटी की अवस्था में फायदेमंद होता है।
-नींद न आने पर जटामांशी के काढ़े एवं मदनानन्दमोदक जैसी औषधियों का प्रयोग अच्छा प्रभाव दर्शाता है।
-यदि नियमित रूप से सिर पर सोने से पूर्व ब्राह्मी सिद्धित तेल का प्रयोग किया जाए तो एंजायटी से बचा जा सकता है। अत: मानसिक तनाव को दूर रखकर एवं टेक इट इजी जैसे मन्त्र को फौलो कर हम रिलैक्स रह सकते हैं और एंजायटी का सामना कर सकते हैं।
आप और हम अपने जीवन में भविष्य को ध्यान में रखकर काम करते हैं। इसके लिए हमारी एक व्यवस्थित सोच होती है, जैसे मान लीजिए कि हमें कहीं जाना है तो हम पूरी तैयारी के साथ अपना रिजर्वेशन,पैकिंग एवं रहने की अग्रिम बुकिंग आदि पहलुओं को ध्यान में रखकर सकारात्मक कार्यक्रम बनाते हैं। इसके लिए कोई अतिरिक्त तनाव लेने की आवश्यकता नहीं होती। मतलब समझ गए होंगे आप कि यह सामान्य तनाव में ही पूरी होनी वाली प्रक्रिया है।
लेकिन जब इसमें एक तनाव जैसे: घबराहट, यात्रा के दौरान एक्सीडेंट होने का भय या होटल में कुछ अनहोनी होने का भय या ट्रेन में लूटपाट होने का भय आदि सताने लगे तो इसे एंजायटी कहा जाता है। इसे अनावश्यक रूप से क़ी गई भविष्य की नकारात्मक चिंता के रूप में आप समझ सकते हैं। कई बार यह चिंता एक फोबिया या भय का रूप ले सकता है।
अत: सामान्य रूप से एंजायटी से हम सभी थोड़ा बहुत जूझते हैं, लेकिन जब यह अति जैसी स्थिति को उत्पन्न करने लग जाए, जो डर का रूप ले ले और सोशल फोबिया या ओब्सेसिव कम्पल्सिव डिसआर्डर (जुनूनी बाध्यकारी विकार) जैसे, बार-बार समय देखना,दरवाजे के खुले होने का बार-बार भ्रम जैसे लक्षण उत्पन्न करे तो स्थिति खतरनाक मानी जा सकती है। एंजायटी से जूझ रहा व्यक्ति कहीं न कहीं अवसाद का भी शिकार भी होता है। ऐसी स्थिति में इसे पूरी तरह ठीक करना कठिन होता है। हाँ, रोगी को औषधि उपचार एवं बिहेवियर थेरेपी द्वारा सामान्य स्थिति में बनाए रखा जा सकता है।
आयुर्वेद में मानसिक स्वास्थ्य को पूर्ण स्वास्थ्य का स्तम्भ माना गया है और आत्मा, इन्द्रिय एवं मन की प्रसन्नता को स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक बताया गया है। आयुर्वेद के ग्रंथों में मनोरोगों की विस्तृत विवेचना की गई है। अगर आप में निम्न लक्षण उत्पन्न हो रहे हों जैसे :
-सुबह सुबह अचानक नींद खुल जाना।
-छोटी- छोटी बातों का याद न रहना।
-हाथ पैरों में कम्पन आना।
-हमेशा परेशान (रेस्टलेस) रहना। यदि ऐसा कुछ हो रहा है तो समझ लें आप एंजायटी की अवस्था से गुजर रहे हैं। ऐसी स्थिति में आयुर्वेद में नस्य चिकित्सा, औषधि उपचार एवं आहार-विहार पर विशेष ध्यान देने क़ी आवश्यकता होती है।
-सर्पगंधा, खस,जटामांशी, ब्राह्मी, तगर, आंवला, गुलाब आदि कुछ ऐसे नाम हैं जिनका चिकित्सक के निर्देशन में प्रयोग दुष्प्रभाव रहित लाभ देता है।
-अश्वगंधा एवं बला चूर्ण जैसी औषधियां भी मानसिक दुर्बलता को दूर करने में कारगर होती हैं।
-कुछ बहु औषधि युक्त चूर्ण जैसे: सारस्वतादि चूर्ण, तगरादि चूर्ण एवं अश्वगंधादि चूर्ण आदि का प्रयोग बड़ा ही फायदेमंद होता है।
-औषधिसिद्धित घृत में महापैशाचिक घृत, पंचगव्य घृत, पुराण घृत, ब्राह्मी घृत आदि का सेवन भी लाभ देता है।
-बलारिष्ट, सारस्वतारिष्ट आदि को समभाग जल से भोजन उपरांत लेना भी मनोविकृतियों में लाभ देता है ।
-कृष्णचतुर्मुख रस, उन्मादगजकेसरीरस एवं स्मृतिसागररस जैसी औषधियों का प्रयोग चिकित्सक के निर्देशन में लेना एंजायटी की अवस्था में फायदेमंद होता है।
-नींद न आने पर जटामांशी के काढ़े एवं मदनानन्दमोदक जैसी औषधियों का प्रयोग अच्छा प्रभाव दर्शाता है।
-यदि नियमित रूप से सिर पर सोने से पूर्व ब्राह्मी सिद्धित तेल का प्रयोग किया जाए तो एंजायटी से बचा जा सकता है। अत: मानसिक तनाव को दूर रखकर एवं टेक इट इजी जैसे मन्त्र को फौलो कर हम रिलैक्स रह सकते हैं और एंजायटी का सामना कर सकते हैं।
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